क्या शिवसेना की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है ?
अफ़वाओं के बाजार
लॉक डाउन 2 में महाराष्ट्र के पालघर जिले करीब 100 किलोमीटर दूर एक गाँव में मोबलिंचिंग की घटना से महाराष्ट्र के शिवसेना सरकार सकते में आ गयी और विपक्ष से काफी आलोचना सुननी पड़ी|
मोब लिंचिग एक अफवा के कारण हुई जिसमे कोई गिरोह बच्चे को चोरी कर लेता है या उसकी किडनी निकल देता है| कोई अनजान जिप या कार में दिखाई दे तो शक और बढ़ जाता है|
यह इलाका एक आदिवासी बहुल क्षेत्र है| इस अफवा के शिकार दो साधू और उनका ड्राईवर हुआ और उनको लाठी डंडे से पीटकर मौत के घाट उतार दिया जाता है|यह तीनो सूरत शहर में अपने सगे समन्धित की अन्तेष्ठी में शामिल होने के लिए छोटे रस्ते से जा रहे थे |
लेकिन घटना के एक दिन पूर्व रेलवे के दो कर्मचारी को भी बंधक बनाया जाता और उन्हें पुलिस द्वारा ही छुड़ाया जाता है, घटना के कुछ दिन पूर्व और एक घटना होती है जिसमे एक डॉक्टर की कार के ऊपर हमला होता है| लेकिन पुलिस ने ठोस संज्ञान नहीं लिया, जिसके चलते निर्दोष तीन लोग मारे गए |
क्या महाराष्ट्र शिवसेना सरकार में शामिल कांग्रेस या इनसे समन्धित संगठन इस घटना को उकसाने के लिए जिम्मेदार है तो क्या वह शिवसेना सरकार का काम बदनाम करना चाहती है ताकि अगले चुनाव में इसका कोई नामोनिशान नहीं रहे और मैदान में सिर्फ भाजपा, कोंग्रेस, और एन. सी. पी. ही रहे |
लॉक डाउन को फेल करने के लिए बान्द्रा स्टेशन पर अफवा का बाजार रहा की ट्रेने शुरू होने जा रही है जबकि मुंबई के कोरोना संक्रमित के आकडे तेजी से बढ़ रहे थे और कभी भी नियंत्रण के बहार जा सकते है जिसमे प्रशासन की नाकामी झलकेगी | इस मामले मे एक NGO कार्यकर्ता को अफवा फ़ैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया जिसके तार शरद पवार की पार्टी से जुड़ते है|
पहले भी देश में मोबलिंचिंग की घटना हुई और देश में इसके खिलाफ आवाजे उठी लेकिन इस घटना में पुलिस कीसंदिघ्न भूमिका को लेकर विपक्ष और जनता ने सवाल उठाया की
कैसे? पुलिस की मौजुदगी में उनपर हमला हुआ
वायरल विडिओमें दिखाई दे रहा है की एक पुलिस जब वृद्ध साधू का हाथ पकडे पुलिस वाहन की और ले जारहे थे तब पीछे से कोई उनको लाथ मारता है| लेकिन पुलिस का रिएक्शन वह कुछ भी मालूम
नहीं पड़ता| एक पुलिस के मौजदगी में यह संशयास्पद है|
पुलिस के शारीरिक हलचलों से यह पता चलता है की उनकी और से कोई अवरोध नहीं किया गया
पुलिस ने कोई हवाई फायरिंग क्यों नहीं की |
इस घटना से लगता है की पुलिस स्पोंसर हो सकती है
घटना की जाँच
शुरू हो चुकी लेकिन उद्धव ठाकरे की और एक परेशानी एक बढ़ी| मुख्यमंत्री रहने के लिए
उन्हें विधान परिषद् का सदयस्य होना जरुरी है ( चुनाव नहीं लड्नेसे विधानसभा के भी
सदयस्य नहीं है) और वे चाहते है की राज्यपाल उन्हें मनोनीत करे और मनोनीत करने का
अधिकार राज्यपाल अपने पास सुरक्षित रखे है| ऐसे
केस में जब ठाकरे मुख्यमंत्री नही रहे तो किसी और को मुख्यमंत्री बनाने को
मजबूर होना पड़ेगा| नये मुख्यमंत्री बाकी दो पार्टियों को मंजूर होंगे यह एक चिकिसा
का विषय है और इसी बिच पहले से असंतुष्ट चल रहे शिवसेना के बिधायक पार्टी छोड़ सकते
है ( कुछ विधायक कोंग्रेस गठबंधन से नाराज है और नव नवेले आदित्य ठाकरे को मंत्रिपद
देने को लेकर ) असंतुष्ट गट के पास दो विकल्प रहेंगे
उन्हें विधान परिषद् का सदयस्य होना जरुरी है ( चुनाव नहीं लड्नेसे विधानसभा के भी
सदयस्य नहीं है) और वे चाहते है की राज्यपाल उन्हें मनोनीत करे और मनोनीत करने का
अधिकार राज्यपाल अपने पास सुरक्षित रखे है| ऐसे
केस में जब ठाकरे मुख्यमंत्री नही रहे तो किसी और को मुख्यमंत्री बनाने को
मजबूर होना पड़ेगा| नये मुख्यमंत्री बाकी दो पार्टियों को मंजूर होंगे यह एक चिकिसा
का विषय है और इसी बिच पहले से असंतुष्ट चल रहे शिवसेना के बिधायक पार्टी छोड़ सकते
है ( कुछ विधायक कोंग्रेस गठबंधन से नाराज है और नव नवेले आदित्य ठाकरे को मंत्रिपद
देने को लेकर ) असंतुष्ट गट के पास दो विकल्प रहेंगे
- या तो वे राज ठाकरे की मनसे पार्टी ज्वाइन करेंगे या
- भाजपा में शामिल होंगे या
- वे अपना अलग गुट बनाकर उद्धव ठाकरे को समस्या का केंद्र बनायेंगे
राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी से मतभेद
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बेघरों के लिए चिकित्सा सुविधाओं और खाद्य पदार्थों की उपलब्धता पर चर्चा की गई, जो कोरोनोवायरस में सबसे अधिक प्रभावित थे।
महाराष्ट्र में शिवसेना सरकार ने शुक्रवार को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी द्वारा कोरोनॉयरस स्थिति
पर अपने प्रशासनिक अधिकारियों के साथ की गई समीक्षा बैठक पर आपत्ति जताते हुए कहा
कि अनावश्यक "समानांतर शासन" केवल भ्रम पैदा करेगा।
अपने संपादकीय मुखपत्र सामना में, शिवसेना ने कहा कि प्रचलित "युद्ध जैसी स्थिति" में, मौजूदा कोरोनोवायरस संकट को देखते हुए, प्रशासन को निर्देश देने के लिए कमांड का एक केंद्र होना चाहिए|
शिवसेना के मुखपत्र सामना ने कहा, "राज्य को एक ऐसा राज्यपाल मिला है, जो किसी भी समय अनुसूची का पालन नहीं करता है और लोगों ने इसका अनुभव किया जब उन्होंने देवेंद्र फड़नवीस और अजित पवार ने सुबह(पिछले साल) शपथ ली।" इसी विरोधाभास के चलते राज्यपाल उन्हें मनोनीत करने से कतरा रहे है| और
मनोनीत करने का अधिकार राज्यपाल अपने पास सुरक्षित रखे हुए है| और संजय राउत गुहार लगा रहे की राज्यपाल उद्धव को मनोनीत करें|
अखाड़े के संत और नागाओं की चेतावनी
पूरी घटना के मद्देनज़र साधू संत और नागा बाबा में
क्रोध उत्पन्न हो चूका है और लॉक डाउन खत्म होने पर महा आन्दोलन की चेतावनी दे
चुके है, ऐसे में उद्दव सरकार पारदर्शी जांच नहीं करवाती तो सरकार को भारी मुश्किलों
का सामना कर पड सकता है और उसका फायदा भाजपा अपनी सरकार बनाने में करेगी|
चुके है, ऐसे में उद्दव सरकार पारदर्शी जांच नहीं करवाती तो सरकार को भारी मुश्किलों
का सामना कर पड सकता है और उसका फायदा भाजपा अपनी सरकार बनाने में करेगी|
वैसे पिछले साल हुए
आम चुनाव में भाजपा-शिवसेना गठबंधन को लोगों ने बहुमत देकर एक हिन्दुत्वादी विचारधारीसरकार को चुना था और देवेन्द्र फदन्वीस का मुख्यमंत्री बनना तय था | लेकिन शरद
पवार अपनी राजनीती खेल गए और उद्धव ठाकरे पर दबाव बनाया की ढाई साल के लिए शिवसेना
का मुख्यमंत्री हो| मुख्यमंत्री कुर्सी की रस्साखेची में जनता की भावनाओ को ताक पर रखकर कोंग्रेस के साथ मिलकर उद्धव सरकार के मुखिया बन गए जो एक जनता की नजर में नाजायज़ गठबंधन था|
वैसे दिल्ही में बैठे अमित शाह भी चुपचाप गेम देखते रह गए वरना गोवा राज्य में अल्पमतहोने के बावजूद भाजपा वहां सरकार बना लेती है| उनको आखरी समय यही मालूम था की शिवसेना कोंग्रेस का साथ नहीं लेगी और उसके बगैर सरकार नहीं बना सकती| अगर बना लेती है तो कार्यकाल 3 से 4 साल हो सकता है इसीके साथ शिवसेना का जनाधार खत्म होकर चुनाव हुए तो भाजपा अपनी दम चुनाव लड़कर सत्ता हासिल कर लेगी|
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