आज का असहयोग आन्दोलन

आज का असहयोग आन्दोलन

आज का असहयोग आन्दोलन
CAA Protest
     


आज मै उस दो आन्दोलन कीचर्चा करूँगा जो असहयोग के नाम से हम जानते है| पहले आन्दोलन को जनमानस ने नाम दिया था और आज का आन्दोलन को कोई नाम नहीं लेकिन मेरी नज़र में यह असहयोग आन्दोलन
ही प्रतीत होता है| पहला आन्दोलन हमें स्वतंत्रता मिलने के पहले का था और दूसरा
अभी हाल ही में देखने को मिल रहा है या यु कहे हम सोशल मीडिया के कारण से महसूस कर
रहे है
| आजादी के पहले वाला आन्दोलन का नेतृत्व महात्मा गाँधी कर रहे थे और अंग्रेज शासन
द्वारा रौलेक्ट एक्ट की मनमानी और जलियांवाला बाग़ इसकी मुख्य वजह थी|
आजादी के बाद वाला असहयोग आन्दोलन के पीछे कोई एक चेहरा या नेतृत्व या खास वजह नहीं है बल्की एक विशेष वर्ग या समुदाय के द्वारा प्रसारित प्रचालित है और यह मोदी सरकार के आने से अधिक गतिमान हुआ है|   
पहला  असहयोगआंदोलन
गाँधी जी के नेतृत्व मे चलाया जाने वाला यह प्रथम जन आंदोलन था। इसमे असहयोग और व्यास काल की निती प्रमुखत: से अपनाई गई। इस आंदोलन का व्यापक जन आधारथा। शहरी क्षेत्र मे मध्यम वर्ग तथा ग्रामिण क्षेत्र मे किसानो और आदीवासियो काइसे व्यापक समर्थन मिला।  इसमे श्रमिक वर्गकी भी भागिदारी थी। इस प्रकार यह प्रथम जन आंदोलन बन गया। 1914-1918 के प्रथम युद्धके दौरान अंग्रेजों ने प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया था और बिना जाँच के कारावास की
अनुमति दे दी थी। इसके जवाब में गाँधी जी ने देशभर में 'रॉलेट एक्ट' के खिलाफ़ एक
अभियान चलाया। उत्तरी और पश्चिमी भारत के कस्बों में चारों तरफ़ बंद के समर्थन में
दुकानों और स्कूलों के बंद होने के कारण जीवन लगभग ठहर सा गया था। पंजाब में
, विशेष रूप से कड़ा
विरोध हुआ
, जहाँ के बहुत से लोगों ने युद्ध में अंग्रेजों के पक्ष में सेवा की
थी और अब अपनी सेवा के बदले वे ईनाम की अपेक्षा कर रहे थे। लेकिन इसकी जगह उन्हें रॉलेट
एक्ट
दिया गया। पंजाब जाते समय गाँधी जी को कैद कर लिया गया था। स्थानीय
कांग्रेसजनों को गिरफ़तार कर लिया गया था। प्रांत की यह स्थिति धीरे-धीरे और
तनावपूर्ण हो गई तथा अप्रैल 1919 में
 अमृतसर में यह खूनखराबे के
चरमोत्कर्ष पर ही पहुँच गई थी, जब एक अंग्रेज ब्रिगेडियर ने एक राष्ट्रवादी सभा पर
गोली चलाने का हुक्म दिया तब
 जालियाँवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाने गए इस हत्याकांड में
लगभग 1
,000 लोग मारे गए और 1600-1700 घायल हुए।
 कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में दिसम्बर 1920  असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव  को प्रस्ताव पारित किया गया। जो लोग भारत से उपनिवेशवाद का खत्म करना चाहते थे उनसे आग्रह किया गया कि वे स्कूलो, कॉलेजो और न्यायालय न जाएँ तथा कर न चुकाएँ। संक्षेप में सभी को अंग्रेजी सरकार के साथ ; सभी ऐच्छिक संबंधो के परित्याग का पालन करने को कहा गया। गाँधी जी ने कहा था कि यदि असहयोग का ठीक ढंग से पालन किया जाए तो भारत एक वर्ष के भीतर स्वराज प्राप्त कर लेगा।

असहयोग आन्दोलन के सूत्रधार, महात्मा गांधी
असहयोग आंदोलन के जनक 

गाँधीजी
ने यह आशा की थी कि असहयोग को खिलाफ़त
के साथ मिलाने से भारत के दो प्रमुख समुदाय- हिन्दू और मुसलमान मिलकर औपनिवेशिकशासन का अंत कर देंगे। विद्यार्थियों ने सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया। वकीलों ने अदालत में जाने से मना कर दिया। कई कस्बों और नगरों में श्रमिक-वर्ग हड़ताल पर चला गया। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक 1921 में 396 हड़तालें हुई जिनमें 6 लाख श्रमिक शामिल थे और इससे 70 लाख का
नुकसान हुआ था। ग्रामीण क्षेत्र भी असन्तोष से आंदोलित हो रहा था। पहाड़ी
जनजातियों ने वन्य कानूनों की अवहेलना कर दी। अवधि के किसानों ने कर नहीं चुकाए।
कुमाउँ के किसानों ने औपनिवेशिक अधिकारियों का सामान ढोने से मना कर दिया। किसानों
, श्रमिकों और अन्य ने इसकी अपने ढंग से व्याख्या की तथाऔपनिवेशिक शासन के साथ असहयोगके लिए उन्होंने ऊपर से प्राप्त निर्देशों पर टिके रहने केबजाय अपने हितों की नजदीकिय बढ़ा दी ।
 असहयोग आन्दोलन भारत और गाँधी जी के जीवन के एक युग का ही नाम हो गया। असहयोग शांति की दृष्टि से नकारात्मक किन्तु आजादी हेतु लड़ने की भावना की दृष्टि से बहुत सकारात्मक था।
 दुसरे असहयोग आन्दोलन की अगर बात करे तो इसकी शुरुवात की पुष्ठी नहीं की जा सकती, लेकिन यह परदे के पीछे से अपनी छाप दिखा रहा था लेकिन इसका कोई ठोस चेहरा सामने नहीं आया| दरअसल प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के समय काल सेकोंग्रेस जनमानस में धीरे धीरे अपनी विश्वास खोती जा रही थी| 
(यह बात अलग है की राजीव गाँधी भारी बहुमत के साथ अपनी माँ इंदिरा गाँधी के हत्या के सहानुभूति लहरमें पांच साल की सरकार का झंडा मजबूत किया था)
कोंग्रेस का तुष्टिकरण की परिसीमा
देश की बागडोर संभाले एक वर्ष बिता ही था की इस तरुण प्रधानमंत्री में निर्णय लेने का धर्मसंकट एक सुप्रीम कोर्ट के अहम फैसले ने खड़ा कर दिया| वो फैसला था 1985  का तलाक पीड़िता शाहबानो मुस्लिम महिला को maintenanceदिलवाने सन्दर्भ में| जहातक मुझे होश है मुस्लिम संघटन ने हर रस्ते पर आकर इस फैसले का पूरी शक्ति के साथ विरोध इसलिए किया की यह फैसला उनके धर्मविशेष के अधिकार में आक्रमण है| देश की सर्वोच्च न्यायपालिका में अविश्वास दिखाकर राजीव
गाँधी सरकार को ब्लैकमेल बनाकर फैसला बदलवाने पर मजबूर किया जो की मै समझता हूँ
असहयोग आन्दोलन की प्रखर झलक यहाँ से उदभूत हुई|
असहयोग की पराकाष्ठा

Source: Google image 

 राममंदिर मसले और फैसले में भी यही हुआ| सालो से रेंगता चल आ रहा मसला जब अपनी आखरी
पड़ाव में था तो सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पार्टियों को आपस में सुलह करने की अंतिम
नसीहत दि ताकि दोनों समाज में आपस में भाईचारा रहे,क्यों की यह आस्था से जुड़ा था
और सुप्रीम न्यायाधीश मानते थे की आस्था के फैसले कानून के डंडे से नहीं दिलो की
दुआ से होते है| इसके लिए अध्यात्मिक गुरु
श्रीश्री रविशंकर ने भी पहल की लेकिन विशेष
समुदाय में असहयोग के संक्राणु पहले ही घर चुके थे तथा उनके प्रस्ताव को ठुकरा
दिया| जब कोर्ट ने सुनवाई के गति बढ़ा दि तो फिर से असहयोग प्रव्रुति जाग उठी जैसे
एक पेटीशन दर्ज करके यह प्रयास किया गया की लोकसभा 19 का चुनाव के चलते सुनवाई एक
साल के लिए रोकी जाये, यहाँ मात खा गए तो शुक्रवार के दिन लंबी प्रार्थना के कारण
हाजिर समय में दिक्कत होती है इसलिए शुक्रवार को सुनवाई न हो का बहाना पेश किया
लेकिन कोर्ट ने एक ना सुनी| तमाम असहयोग के अतान्त्रिक हथकंडे अपनाकर खुद को एक
अलग नकाराम्तक सोच का समूह और मामले की अवधि बढ़ने पर रणनीति देखि गयी जिसमे हैदराबाद का हिस्सा अति क्रियाशील रहा |
 
आज का असहयोग आन्दोलन
सुप्रीम कोर्ट कि अनदेखी 

 
वादों से मुखरना 
राम मंदिर विवाद का फैसला आने के पूर्व दोनों पक्ष सहमत और निश्चिंत थे के फैसला जो भी हो मान्य रहेगा| जब फैसला आया तो हिन्दू पक्ष इसका ढोल-नगारे और फटाको के साथ स्वागत भी नहीं कर सके! क्यों??? इन्होने यैसा करने पर  माना की एक समुदाय को जले पर
नमक जैसा महसूस होगा| लेकिन असहयोग आन्दोलन वाले इस भाईचारा वाले सोच से क्या
लेनादेना? फैसले के विरोध में कोई बोर्ड या संघठन ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की|
 प्रतिवादी पार्टी को समझना होगा इतने सालों से कोर्ट विचार विचार और विचार ही कर रहा था आपको यह बताने की जरुरत क्यों समझी? की पुनर्विचार किया जाये| ठीक उसी एक तरह एक आतंकवादी की फांसी रोकने के लिए कोर्ट
के दरवाजे रात बारा बजे खुलवाए जाते है ताकि पुनर्विचार हो
|
हम भी मरेंगे लेकिन बेगुनाहों को मारकर 
 कोरोना से सम्बंधित मामले के लेकर एक संगठनआजकल काफी चर्चित है उसका नाम तब्लीघी जमात है| बहुत सारे भारतीय कोमालूम भी नहीं की मुस्लिम वर्ग का एक हिस्सा प्रोफेट मोहम्मद के उसूलो और तालीम आजभी कट्टरता से करता है जिसमे बाकि वर्ग सहमत नहीं है और इसे प्रतिबंधित करने की अपिल कर चुके है, वैसे कुछ देशो में यह संगठन प्रतिबंधित है लेकिन इनके मौलाना को
सुनकर मुझे तरस आता है| क्योकि 
कोरोना वैश्विक महामारी के चलते देश में कुछ निर्देशिका जारी हो रही थी तब्लीघी जमात का
कार्यक्रम पूर्वनियोजित था लेकिन इसे बाहरी विदेशी लोगो के लिए प्रतबंधित किया जा
सकता जो संक्रमित देशो से संदिग्थ थे|  मौलाना साद ख़ुद कह रहे है के सरकार हमें भय दिखा रही है ताकि हम मस्जिद/मरकज़ में जमा ना हो, बैठके ना हो | कोरोना के आड़ में यह षड़यंत्र है| लॉकडाउन के पहले और बाद में आपके मरकज़ में बैठके होती रही  इस बेफिक्र में के अगर एक भी आदमी संक्रमित हो जावे तो बाकी हजारो आसानी से संक्रमित होकर मौत से
पहले लाखो को मरवाकर रहेंगे|
 इसी बीच एक आपका एक अनुयायी का विडिओ सामने आया जो नोटों से अपने नाक साफ़ करते हुवे कह रह है|
कोरोना भयंकर बीमारी है| मंशा साफ़ झलक रही थी यह नोट  बहार जाकर संक्रमण फैलाये| फ्रूट वाला नोटों की तरह फल को थूक  लगाकर अलग अलग कर रहा था तो
कोइ संदेहस्पद  स्थिति में पकडे गया |

किसी अफवा में आकर डाक्टरो की टीम पर इन्दोर में पत्थरों से हमला किया गया तो कही अस्पताल में बत्तमीजी और असहयोग
 अफवा तो पोलियो मुक्ति कार्यक्रम में भी फैलाई थी की पोलियो ड्राप में नपुंसक दवाई मिलाई
जाती है, परिणाम क्या हुआ लोग जानते है| भारत सरकार सभी के लिए शिक्षा का अवसर प्रदान
करती है ताकि तर्क संगत बनो लेकिन समूह के 4% को मंजूर नहीं और मदरसों की शिक्षा
ग्रहण करते है जो अच्छे व्यावसायिक बनने पर रोक लगाती है और राष्ट्र उन्नति में
सहयोग की कमी|    
  इस लॉकडाउन में समूह ने सहयोग तो किया नहीं बल्की उल्टा संक्रमण को प्रसार करने में मदत की
क्यों की यही अल्ला का फरमान है वाली मानसिकता की शिक्षा से ग्रसित होकर इसे बढ़ावा
देना था |  
शाहीनबाग़ में संविधान की धज्जिया -- 
जिस नागरिक संशोधन कानून को असंवेधानिक कहकर असहकार आन्दोलन समूह ने विरोघ किया वे भूल गए की संविथान ने हमें विरोध करने का मौका तो दिया है लेकिन एक परिसीमा के अन्दर| कोई रास्ता रोककर और सार्वजनिक मालमत्ता को आग के हवाले करकर नहीं|  यह कैसा विरोध जिसमे जुबानी जंग में मासूम बच्चे में नफ़रत का सियासी घूंट पिलाया गया|       
    दरअसल नागरिक संशोधन कानून उन तीन पड़ोस की देशो के हिन्दू ,बौद्ध,शिख इसाई पारसी लोगो को धर्म के आधार पर प्रताड़ित किया जा रहा है और इनकी संख्या सालोसाल घटती जा रही थी उनको भारत की नागरिकता देने का कानून में संशोधन किया गया, लेकिन असहयोग आन्दोलन का समूह इस
बात पे नाराज़ हुआ की इसमें मुस्लिम शामिल क्यों नहीं है जो संविधान के मुल सिद्धांत की उल्लंघन करता है |
 समूह को भ्रमित करने का काम कोंग्रेस ने किया और समूह इस बात से पर अनजान रहे की कानून जब बनता है तो पार्लियामेंट के दोनों सदन लोकसभा और राज्यसभा में इसकी बहस होकर पास होकर आखरी मुहर राष्ट्रपती की लगती है| जो पूरी तरह संविधानिक होता है| संविधानिक पद ग्रहण करनेवाले राष्ट्रपती मुल सिद्धांत को कैसे उल्लंघन कर सकते है???
 क्या असहयोग आन्दोलन का समूह वह चाहता है
जो मुस्लिम आजादी के वक्त देश बटवारे में हिन्दुस्तान से चले गए थे इस आधार पर की
पाकिस्तान इस्लामिक राष्ट्र है इसे बनाने के लिए “जिन्ना” वाली “मुस्लिग़ लीग पार्टी”
को भारतीय मुसलमानोने 90% सीट जितवाकर पाकिस्तान निर्मिती का रास्ता सुलभ कर दिया
था उन्हें भारत की नागरिकता दि जाये???
क्या असहयोग आन्दोलन का समूह चाहता है की भारत
को शक्तिशाली राष्ट्र बनाने की नींव को उखाड़कर जो लोग हमें धोका देकर चले गए उन्हें
हम अभी अपनाये???
वैसे शर्त
के आधार अभी तक
2830 ( पिछले छ सालों में ) लोगो को भारतीयता दि गई जिसमे अधिकतर
मुस्लिम है|

असहयोग आन्दोलन के सूत्रधार
डॉक्टर और हेल्थ वर्कर पे इन्दोर शहर में हमला 
 अब इस सरकार के आनेवाले हर सरकारी फरमान का अपनी तरीके से विरोध दिखाकर, असहयोग दिखाकर भारत के प्रगतिपथ में गड्डे निर्माण करना चाहता है जो आनेवाले समय में भारत को बलशाली बनने में रोक लगेगी| इसके कुछ ताजा उदाहरण कोरोना महामारी के चलते देखने को मिले जैसे महाराष्ट्र के ऊर्जामंत्री ने जनता की बिच भ्रम फैलाया की एक साथ 9 बजे लाइट (प्रधानमंत्री के अनुरोध पर लाइट बंद करना और दिया जलाना) करने से पावर ग्रिड फेल हो सकती है| तो कुछ समूह ने कहा हम फला तारीख को ही दिया क्यों जलाये, इसमें इनकी पार्टी (भाजपा )की वर्षगाँठ मनाई जा रही है और बाय डिफाल्ट वे पार्टी के लिए दिए जलाने को कह रहे है | आखिरकार विरोध और असहयोग करने के अपने अपने हथकंडे है| "अपनी डफली अपना राग “ यही अंत में कहना होगा|
क्रमश:




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