दंगल पे मंगल

dangal pe mangal
गोरक्षक -मोनू मानेसर 

 

दंगल  पे मंगल

CAA पे दंगल

 बीते कुछ सालो में देश का लोकतंत्र अखाडा दंगल के लिए खुला हो गया है और कुछ हितचिन्तक इस दंगल का निरिक्षण अपने मंगल कार्यों के लिए देख रहे है | जाहिर है मै राजनितिक और सामाजिक गलियारों के चश्मे से देख रहा हूँ | यहाँ दंगल का मतलब सम्प्रदैक दंगा या राजनितिक दंगा की मै बात कर रहा हूँ |

 जहा तक मुझे याद है अगर गोधरा २००० का दंगा छोड़ दिया जाये तो २०१८ तक देश में शांति का माहौल रहा है | साम्प्रदायिक दंगा को विराम लगते देख कुछ हितचिंतको ने राजनीतक दंगे की पैदाशी बिज बोना चालू कर दिए | बात शुरू होती CAA कानून लागु करने की जिसके लिए ड्राफ्ट बनाने की  पेशकश जरी होती

लेकिन शांति अमन जिन्हें पसंद नहीं उनको इस तरह फुसलाया गया की इस कानून से वे बेघर हो जायेंगे और उनकी सारी सुविधाए वापिस ली जाएगी जिसका परिणाम देल्ही दंगों में हुआ जिसमे मुख्या आरोपी में से एक विधायक पाया गया जो एक राजनितिक पार्टी का है
मतलब साफ़ है राजनितिक पार्टी जाने अनजाने में इस बात से अवगत है | रजनीतिक उद्देशों पर नज़र रखकर इस दंगों को ऐसा भड़काया गया की केंद्र सर्कार CAA कानून का ड्राफ्ट लाना टालती गई | जाहिर है सर्कार नहीं चाहती की बचा खुसा वोट बैंक भी हाथ से न फ़ीसल जाये चाहे देशहित को कुछ असर सेंध लगाती है लगने दो |

मणिपुर दंगल

यहाँ भौगोलिक कारणों से दंगल लड़ी गई ( मेरा मतलब साम्प्रदैयिक हिंसा ) मणिपुर में दो समाज मुख्यता रहते है मैती और कुकी. इन दोनों में 1950 से दुश्मनी चल रही है क्यों की मैती समाज से 1950 से Schdule Tribe का दर्जा छिनकर उसे OBC में डाला गया | अब वे कुकी समाज की जमीन खरादी नहीं सकते या जो भी लाभ उठाने चाहते  वो उसे नहीं कर सकते कारन कुकी आदिवासी में आते है | वैसे पहाड़े में रहते और विरल रहते है और 1960 तक अल्प संख्यक ही थे लेकिन धीरे धीरे कुकी ने अपनी संख्या बढ़ा दी पड़ोस वाले देश बर्मा ( आज का म्यांमार ) से वहा के कुकी लोगों को शरण देकर |  इसमें लूप होल यह भी रहा की कुछ शरणार्थी लोग जो आदिवासी न होकर भी पहाड़ो में रहने लगे | हालाकि ऐसे लोगो का कोई रेकोर्ड नहीं रहता की कोण किस जाती का है वह सिर्फ शरणार्थी होता है | सर्कार ने में भी आँख मुंध ली और जब संख्या जादा हो गई तो वोट बैंक के तौर पे इसे देखा गया | संलग्न सरकारी पत्र यही दर्शाता है की इन शरणार्थी को सिस्टम में बिठाए जाये| कुछ सालों में कुकी की संख्या अक्सर बढती रही लेकिन यह लोग शहर के तरफ आकर काम करते थे लिकिन अक्सर इनमे सांप्रदायिक तनाव हमेश रहा है | आदिवासी जमाती का फायदा उठाकर कुछ कुकी शस्त्र भी रखा करते है और निरंतर इनमे सांप्रदायिक झड़पे होती रही है 

इसी अंतराल में मैती समाज ने कोर्ट में याचिका भी दाखिल की थी उसे 1950 के पहले के स्तिथी बहल करे| सुप्रीम कोर्ट का फैसला मैती समाज के पक्ष में आने के कारन कुकी समाज नाराज होकर protest march निकला था और कुछ तनाव हुआ था |

लेकिन विद्यमान सरकार ने इसकी सुध नही ली और एक चिंगारी भड़क गई जो ज्वाला बन गई और कई लोगों का जीवन बर्बाद कर गई| ज्वाला भभकती रही लेकिन सर्कार ने और केंद्र सरकार ने इसे बुझाने का ढोस उपाय धुंड  नहीं निकाला | यह भी माना जा रहा है की इसमें जानबूजकर देरी की गई

पूरब की आग बुझी नहीं और पच्छिम में धुआ उठाने लगा ...

नल हरेश्वर-प्राचीन शिव मंदिर नुह जिला
प्राचीन शिवमंदिर- नल हरेश्वर बना दंगाईयो का कारण 


मणिपुर के समाधान ढूंड  ही रहे थे की पच्छिम दिशा में साम्प्रदायिक के  धूए उठाने लगे | बात  कर रहा हूँ राजस्थान के अलवर जिला और हरियाणा के नुह जिला के परिसर की | पहले इस परिसर को मेवात कहते थे| यहाँ 90 % मुस्लिम आबादी है जो पस्तुनी भी कहलाती है|  राजनितिक चौसर पे इस तरह गोटिया बिछाई गई की यहाँ एक प्राचीन शिवमंदिर “नलहरेश्वर” मंदिर है जो हर साल तय तिथि पर बड़ी मात्रा में पूजा का आयोजन होता है लेकिन इस पूजा पर VHP, बजरंग दल जैसे संगठनो ने तीन सालों से स्पोंसरशिप लिया है | इन संगठनो द्वार इस जिला से रैली निकलकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया जाता है| लेकिन इस बार वहा के स्थानिक गोरक्षक मोनू मानेसर जिसपर मुस्लिम युवक के हत्या का आरोप है उसने सोशल मीडिया के माध्यम से इस रैली में शामिल होने के बात कही थी | बाद में क्या हुआ हुआ था सब लोग जानते है|

 लेकिन राजनीतिक बयां से यही मालूम पड़ता है जो लोग मारे गए उनकी फ़िक्र कोई नहीं करता, कोई यह कह रहा है की मोनू मानेसर की वजह है, कोई यह कह रह है मुस्लिम नहीं चाहते की वहा बड़े पैमाने पर रैली न हो इसलिए राजस्थान सीमा से दंगाई को आमंत्रित किया गया|

मेरा कहना है अगर मोनू मानेसर से अगर दुश्मनी है तो धार्मिक यात्रा पर पत्थरबाजी क्यों?
 देश में अभी तक जो भी दंगे हुए उसके बाद दंगे रोकने की कोई ढोस व्यवस्था का निर्माण हुआ नहीं | यह सभी सरकारों की नाकामी है की बड़े पैमाने पर रैली पर पथराव और दंगा होता है| मै तो मानता हूँ  की यैसे सुनियोजीत षड़यंत्र पर सर्कार की और स्थानिक प्रशाशन की जवाब देहि सुनिच्छित की जाए और आर्थिक दंड का प्रयोजन हो जो विधायक, सांसद, कलेक्टर, थाना मुख्या प्रभारी की तनखा से कटी जाय   

           

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