EVM को सुप्रीम कोर्ट का मतदान
EVM को सुप्रीम कोर्ट का सहारा
देश भर में लोकसभा के चुनाव को लेकर EVM के लेकर जो विरोधी माहौल बनाया जा रहा था उसे सुप्रीम कोर्ट ने २६ अप्रैल के निर्णय से सबके मुंह बंद कर दिए | देश के मध्य स्थित नागपुर शहर में संविधान चौक में एक महीने तक आन्दोलन चलता रहा | “EVM हटाओ देश बचाओ “ के नारे प्रखर हुए, इस आन्दोलन के सूत्रधार ने यह तक घोषणा की थी वे चुनाव आयोग को मजबूर करेंगे की रामटेक और नागपुर संसदीय सिट के चुनाव बलेट पेपर से हो, यानि EVM मशीन के जितनी उम्मीदवार को लिस्ट को अंकित करेगी उससे अधिक संगठन की और से उम्मीदवार खड़े किये जायंगे | लेकिन नामांकन की आखरी तारीख तक इस संगठन की और से या सम्बंधित राजकीय पक्ष से ऐसे पर्याप्त उम्मीदवार इस चुनाव में खड़े नहीं हुए | इससे यह साबित होने में बल मिला की ऐसे संगठन और उनके मित्र पक्ष भोली जनता को सिर्फ गुमराह कर रही थी|
कोंग्रेस का डर
पिछले एक दशक से जब से कोंग्रेस की सरकार
राज्योसे खिसकने लग गई धीरे धीरे कोंग्रेस के सूर EvM के खिलाफ हो गए | मध्य
प्रदेश छत्तीस गढ़ और राजस्थान में फ़िर से
कोंग्रेस की सरकार गठित होने से यह सुर धीमे पड़ गए थे लेकिन इनके समर्थक आम आदमी
पार्टी और समाजवादी पार्टी इनके सुर ऊँचे हो गए |
मतलब जो पार्टी जहा ( भाजपा को छोड़कर) हार रही थी वह अपने हार का ठीकरा EVM
फोड़ दिया करती थी | हालांकि कोंग्रेस के दिग्गज नेता पंजाब के मुख्यमंत्री ने
पंजाब चुनाव जितने पर खुद कोंग्रेसियों को
फटकार लगाई की EVM में कोई गड़बड़ी नहीं है और आम आदमी पार्टी से चुनाव हारने पर भी
अपना ठीकरा EVM पर नहीं फोड़ा |
क्या विपक्ष तकनिकी व्यवस्था की आगे नहीं बढ़ानी
चाहती?
ऐसा भी नहीं
है की चुनाव आयोग ने इनको मौका नहीं दिया
| आयोग ने आव्हान किया के उनके सामने आकर गड़बड़ी को साबित करे लेकिन इन्होने ने
लोकत्रांतिक रास्ता चुना यानि सुप्रीम कोर्ट जाकर यह गुहार लगाई की EVM मशीन से
चुनाव न हो | एक बार नहीं चालीस बार इस व्यवस्था के खिलाफ कोर्ट में गए | कोर्ट ने
किसी याचिका कर्ता फटकार भी लगाई के आपके आरोप बेबुनियाद है, फ़िर भी लोकतंत्र है
की कही विरोध हो रहा हो तो संज्ञान लिया जाये
और अलग अलग स्रोतों से आयी याचिकाओ पर एक साथ विचार कर सुप्रीम कोर्ट ने सदा के लिए
कोंग्रेसिओं का मुंह बंद किया और पूछा की इस व्यवस्था को बेहतर बन्नने के लिए क्या
किया जा सकता है और दिशा निर्देश दिया की
वोटिंग की गंनना और VVPAT की गणना मिलाना चहिये |
तकनिकी व्यवस्था की
घोर निंदक रही है कोंग्रेस इसका उल्लेखनीय उदहारण अगर दिया जाये तो अर्थविद
चिंदम्बरम ने डिजिटल पयेमेंट का मजाक बनाया था की भारत में सम्ब्हब नहीं है क्यों
की यहाँ की ५०% जनता तकनिकी जानकार नहीं है लेकिन आज मोची से लेकर कुल्फी वाला से
लेके बनारसी पान वाला भी डिजिटल पेमेंट स्वीकार कर रहा है |
यहाँ बात करने योग्य यह है की पुराणी व्यवस्था के चलते वोटिंग गंनना को काफी समय लगता था वो बच जायेगा और लठमार समाजकंठक ( राजकीय पार्टी के पाले हुए बाहुबली) से छुटकारा मिल जायेगा| कोंग्रेस अब छट पटाएगी केंद्र में सत्ता को को कैसे काबिज किया जाये जो इसके बस में नहीं है हलाकि २७ राजकीय पार्टी मिलकर भी यह मुमकिन नहीं
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