सस्ती होती आम जिंदगी

 

     आम आदमियों की जिंदगी कितनी सस्ती हो गई है इसका अनुभव पिछले कुछ घटनाओं से मालूम पड़ता है । हाल ही में जो घटना हुई है, हाथरस में। जिससे लगभग 125 लोगों की जान गई है और यह सरकारी  आंकड़ा है।इसके ठीक पहले तमिलनाडु में 40 लोगों की जान जहरीली शराब पीने से हुई है। उसके कुछ महीने पहले राजकोट में एक खेलकूद वाले तंबू में आग लगने से लगभग 60 लोग बच्चों सहित स्वहा हो गए थे। इन सारी घटनाओं का अगर ध्यान दें तो सरकार आम जिंदगी की तरफ बस मामूली ख्याल रख रही है। 

    कोई भी सरकारें आम जिंदगी को बेहतर न बना पाई तो वर्तमान और भविष्य की आशा को कम से कम संजोगे रखते तो यह काफी होता| भारत में अन्ध्श्रधा इस प्रकार सुमार है की कोई भी बाबा हाथ चालाकी से  चमत्कार कर लेता है और उसके भक्तों की भीड़ दिनों दिन बढाती रहती है | इनके आयोजक भी कोई विशेष तालीम नहीं पाते की आपत्कालीन में कैसे निपटा जाये? स्थानीय प्रशाशन भी अपनी कौशल दिखाने में संकोच कर लेता है क्यों की यहाँ आनेवाले सामन्यतः सामान्य ही होते है मतलब आम लोग | अगर कोई नेता इन प्रवचनों में कोई शामिल हो रहा हो तो पूरा प्रशाशन अपनी लवाजम के साथ मुस्तादी से डटा होते दिखाई देंगे|

दिवार और इस आम आदमी दोनों को डर नहीं की दिवार कभी भी ढह जाएगी|

     मैं बात कर रहा हूं हाल ही में एक नागपुर के औद्योगिक क्षेत्र में पोस्ट आफिस ( डाक विभाग) की आवर्ती जमा करने वाला शख्स जिसका नाम प्रदीप खंगार है  करीब 20 करोड़ रूपया का निवेश लेकर भाग गया। वो महाराष्ट्र के सीमा वर्ती राज्य से आता  है | सभी समाचार पत्रों ने यही छाप कि वह शख्स पिछले 25 सालों से आवर्ती जमा कर  जमा कर रहा था। लोगों का उसे पर विश्वास था। चेहरा भी सादा था , और सारा फोकस उस एजेंट और पैसे पर था लेकिन एक दिन वह फरार हुआ। 

 कैसे? ???

    सभी समाचार पत्रों ने" गुनाह उसने किया "पर उंगली निर्देश किया लेकिन किसी ने इसके तरफ ध्यान नहीं दिया की उस शख्स ने जो अपनी बीवी के नाम एजेंसी ली थी|  पोस्ट आफिस के मैनेजेर ने यह जानने की कोशिश नही की अचानक आवर्ती किस्त आना बंद कैसे हुआ है? तो चले उसे पूछते है की व्यवसाय क्यो नहीं हुआ ? अगर यह पुछतांच पहले की गई होती तो आम आदमी की वर्तमान और अतीत की जमा राशि का नुकसान कम होता |

सरकारों का कमाई का द्रव्य

    मैं बात कर रहा हूं आम आदमी की वर्तमान जिंदगी को नकली शराब ने किस तरह डुबो के मारा हैं और भविष्य पूरा अंधकारमय दिख रहा है क्योकि अब शराब की की मार्केटिंग खुद सरकारे कर रही हो तो इसमें जहर मिलाना तय है  जब से कोई राज्य या जिला में शराब बंदी लागू होती हैं तो शराब कम और रूपया ज्यादा बनाता है बिहार में शराबबंदी लागू हुई और  नकली शराब बनाने का धंधा भी जोर-शोर से चलने लगा  । महाराष्ट्र में वर्धा में स्थाई है और चंद्रपुर जिले में दो साल से हैं शराब बंदी है | शायद यह नेता और अफसरों की समानांतर चलने वाली फैक्टरी है इसलिए कहीं न कही नक़ली शराब से आम लोग जैसे दिहाड़ी मजदूर, या कम वेतन पाने इस व्यवस्था का शिकार होते हैं। तमिलनाडु में 40 लोगो की जहरीली शराब पीने से  मृत्यु होना इसी का प्रमाण हैं | इस भ्रष्ट व्यवस्था के मुख्य कारीगर को कोई ताउम्र जेल नहीं हुई या फांसी देते सुनाई  नहीं आया  



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