पश्चिम बंगाल की ममता सरकार और पुलिस विभाग ने एक एड दस्तावेज़ी नोट जारी किया है कि वह आम बांग्लादेश जनता की गतिविधि को किसी भी वीडियो या लिखित मज़कुर, ऑडियो या फिर से इस तरह का कोई पाठ संदेश देता है, जो बंगाल के अंदर है, जो निवासी है हैं या नहीं हैं उन्हें शेयर न करें|
अब बंगाल की सरकार से इस तरह का इंस्ट्रक्शन जारी करने का मतलब की
ममता बनर्जी को भी यह बात समझ में आ गई कि इस्लामी फंडामेंटलिस्ट जो शेख हसीना को
नहीं छोड़ सकते जिसके परिवार ने बांग्लादेश बनाया, जो वहां सरकार को नहीं छोड़
सकते और पाकिस्तान जैसा हाल वहां बना दिया
है मतलब संसद में जाकर कुर्सिया में बैठकर खुद को सांसद समजना या प्रधानमंत्री के
आवास में जाकर चैन की वस्तु की लूटमार यहाँ तक की जो खाना बनाया था उसको वहमी
तरीके से खाकर हुडंग मचाना इत्यादि इत्यादि को मद्देनजर रखते हुए ए कयास लगाये जा
रहे है की ममता दीदी का तख्ता पलट करने में देर नहीं लगेगी | हसीना शैख इस्लामी
होने के बावजूद मतलब हसीना डेमोक्रेसी को
थोड़ा सा बढ़ावा दे रही थी सेकुलर नेचर दिखाने की कोशिश कर रही थी मुस्लिम है लेकिन
हिन्दुस्तानी तहजीब को फॉलो करती हैं जैसा
साडी का पेहराव और बहन की साड़ी सर के ऊपर से न उतरना, खतरेमे होने के बाद हिन्दुस्थान से मदत
मांगना और सबसे बड़ी बात यह है कि वह
पिछले 15 साल से सत्ता में है|
तसलीमा नसरिम का जो एक पर ट्वीट आया है उसमें उन्होंने कहा कि यह शेख हसीना की ही कामों का परिणाम है शेख हसीना ने जिस प्रकार से इस्लामिक फंडामेंटलिस्ट को वहां बढ़ावा दिया था करने दिया था जो इस्लामी फंडामेंटलिस्ट करना चाहते थे क्योंकि उन्होंने करने दिया था |
क्यों की जो बच्चे को
गलत हरकते करने देंग्र वो जब 20 वर्ष का होगा
तो वह रंग दिखायेगा | यह उसका भी परिणाम है कि शेख हसीना ने कट्टरपंथियों को पनपने
दिया जो उनके लिए सत्ता के और जन के दुश्मन हो गए और देश छोड़ के भागना पड़ा | वह थोड़ी
सी लिबरल सिक्योरिटी पाना चाहती है जो बंगला देश में 8 -9% हिंदू बचे है उसका वोट पाने के लिए बांग्लादेश
में सेक्युलर होना चाहती थी, जो कट्टर पंथियों को नागवार गुजरा | है पूरे विश्व ने
उनका लोन इसलिए दे रखा था की एक हसीना डेमोक्रेसी स्थापित कर पा रही है|
और सबसे मजे की बात है कि शेख हसीना ने जैसी ही 1971 के स्वतंत्रता सेनानियों को 1971 में जिनकी शहादत हुई आज़ादी के लिए उन सबके
बच्चों को रिजर्वेशन पारित किया लेकिन फंडामेंटलिस्ट कोई अच्छा नहीं लगा क्योंकि
पाकिस्तान से अलग होना मतलब ओरिजिनल इस्लाम में फुट डालना ऐसा कट्टरपंथी मानते थे
और कुछ ने 1971 के समय पाकिस्तानी
सेना को मदत भी की थी| पाकिस्तान चाहता था की ईस्ट पाकिस्तान से साथ निरंतरता
रहेगी तो भविष्य में भारत के अंदर उसके
विचार बोने थे और वो चीन के साथ मिलकर यह कर सकता था इसलिए हिंदुस्तान को इस्लामी नहीं
बनाया जा सकता अगर बांग्लादेश पाकिस्तान के साथ न होता तो हिंदुस्तान को दारुल इस्लाम बनाने के
लिए हिंदुस्तान के अंदर की पापुलेशन को इस्तेमाल कर बांग्लादेश पाकिस्तान की
पापुलेशन को भारत के अन्दर घुसेड़कर दारू
इस्लाम बनाया जा सकता था लेकिन बंगलदेश बनकर वह प्लान पूरा नहीं हो पाया और ईस्ट
पाकिस्तान से 1971 मे
बांग्लादेश अलग हो गया |
फ़िर भी लिस्ट लम्बी है जो वहां के इस्लामी
टीचर्स कोलेज पहुंच रहे थे, और छात्रों की टीम बनवा रहे थे जो इस बहाना ढूंड रहे
थे की कब तख्ता पलट किया जाये
इस्लामी फंडामेंटललिस्ट ने शेख हसीना जो मुसलमान
थी उनको भी नहीं छोड़ा | अब ममता बनर्जी को यह बात समझ में आने में बहुत समय नहीं
लगेगी क्योंकि वह कभी कोमुनिस्तो को परास्त कर सत्ता पाई थी उसका अधा श्रेय बंगाल के
कट्टरपंथी को जाता है जो बांग्लादेश से बंगालियों का घुसपेठ करने में मदत कर थे बाद
में ममता के कट्टर वोटर बन गए इसलिए ममता
बनर्जी इस्लामी कट्टरता को शरण दे रही हैं और जिस प्रकार से उनको उन्होंने हवा
पानी दिया है उससे देखने में बहुत समय नहीं लगेगा कि ममता बनर्जी को वह
(कट्टरपंथी) इस्तेमाल कर रहे थे |
इस्लाम की खास बात है या तो वह खुद
सत्ता का भाग हो सकता या हो जाएगा या फिर
वह सत्ता के साथ हो जाएगा तो लगेगा कि इस्लामी लोग उसके साथ है | इस्लामी
फंडामेंटलिस्ट की खास बात किए हैं कि उनको जैसे ही अवसर मिलेगा वैसे ही वह सत्ता
खुद हो जाएंगे और उसके लिए अगर अगर औरंगजेब को शाहजहां का कत्ल करना पड़े और शाहजहां
को नूरजहां का क़त्ल करनी पड़े तो करेंगे | जहांगीर को अगर अकबर की हत्या
करनी पड़े तो जहांगीर को सत्ता से अलग का देंगे क़त्ल करेंगे और अपने ही करेंगे क्योंकि
सत्ता पाना है | सत्ता के लिए वह उनको भी माफ नहीं कर सकते जो उनके सगे बाप होते तो
शेख हसीना किस लाइन आती है और ममता बनर्जी अरविंद केजरीवाल और इन लोगों को लग सकता
है कि हम इनका उपयोग करते हुए हम इनका वोट तो ले रहे हैं कि वह सत्ता के साथ होकर
सत्ता पर धावा न बोल दे और कड़ी आंख लगाए हुए हैं कि जिस दिन उनको अवसर
मिलेगा वह करेंगे और उनसे आग्रह किया संसद में ऐसे प्रश्न उठाये जायेंगे की पश्चिम बंगाल को आव्हान दे सकता है तो बिहार को दे
सकता है यह उड़ीसा में भी गड़बड़ कर सकता है असम में गड़बड़ कर सकता है, यह
तमिलनाडु में गड़बड़ कर सकते कर्नाटक और महाराष्ट्र में भी गड़बड़ कर सकता है, यह
समस्या दिल्ली में भी आ सकती है क्योंकि वह फंडामेंटलिस्ट आगे बढ़ेंगे उसको लेकर
और उनका विचार में किसी प्रकार का कोई शीर्षक नहीं है उनको वह लोग नहीं चाहिए
जो फंडामेंटलिस्ट नहीं है|
फंडामेंटलिस्ट को इस्लाम का शासन चाहिए उनको डेमोक्रेसी चाहिए ही नहीं उनको वह
कॉन्स्टिट्यूशन का नाम नहीं जो इनके शरिया से मेल नहीं खाते हो| यह बात हमारे देश की पॉलिटिशियन जब आज बैठक कर रहे थे
तो एक ने भी बात नहीं कहीं की शेख हसीना को भारत क्यों आने दिया? पर यही हिंदू राजा
होता या हिंदू प्रधानमंत्री वहां का होता तो क्या सीन पर अरविंद केजरीवाल ऐसा ही कहते
हैं ?
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